आयुर्वेदिक
क्षारसूत्र पधति द्वारा
गुदा के रोगो
का सफ़ल ईलाज
बहुत आसानी से
सम्भव हो सकता
हॆ !
सामान्य रूप से
गुदा से सम्बधित
रोगो के लक्षण
--
१. शॊच के
वक्त दर्द् या
जलन का होना
२. शोच के
वक्त , शोच से
पहले या बाद
मे खून का
आना
३. शोच के
वक्त मस्सो का
बाहर आना जो
कि शोच के
बाद या तो
स्वय अन्दर चले
जाते हॆ या
रोगी स्वय उन्हे
हाथ से अन्दर
करता हॆ !
अत्यधिक बढी हुई
अवस्था मे ये
गुदा से बाहर
ही रह जाते
हॆ तथा उठते,
बॆठते वक्त घर्षण
के कारण इनमे
जख्म भी हो
सकता हॆ !
४. गुदा के
आसपास की जगह
पर फ़ुन्सी का
होना जिसमे भयकर
पीडा होती हॆ,
जो कुछ समय
बाद स्वय ही
फ़ूट जाती हॆ
तथा उसमे से
पीक बाहर निकल आती हॆ,
पीक के बाहर
निकलने पर रोगी
को आराम का
अनुभव होता हॆ,
जिस कारण रोगी
लापरवाह भी हो
जाते हे! तथा
फ़िर से रोगी
को वही परेशानी
कुछ समय बाद
होने लगती हॆ
! अर्थात गुदा के
पास फ़ुन्सी का
होना , फ़ूटना, पीक का
बाहर निकलना फ़िर
ठीक हो जाना
! बार बार यही
परेशानी होने पर
यह भगन्दर मे
परिवर्तित हो जाती
हॆ जिसमे से
लगातार पीक बहती
रहती हॆ !
गुदा से सम्बन्धित
रोगों में निम्नलिखित
रोग मुख्य रूप
से पाए जाते
हॆ १
अर्श्/ बवासीर- सामान्य लक्षण-
१. शोच के
समय पिचकारी की
धार के रुप
में खून का
आना
२. शोच के
साथ बवासीर के
मस्सों का बाहर
आना, जो कि
शोच के बाद
या तो स्वयं
अन्दर चले जाते
हॆं, या रोगी
स्वयं उन्हे अपने
हाथ से अन्दर
करता हॆ ऒर
अन्दर करने के
बाद वे अन्दर
ही रह जाते
हॆं !
एक अवस्था
ऎसी आती हॆ,
जब रोगी इन्हें
हाथ से अन्दर
करता हॆ, पर
ये फ़िर् से
बाहर निकल आते
हॆं तथा बाहर
ही रहते हॆ.,
जिसके कारण इनमें
जख्म भी हो
जाते हॆं !
३. रोग के
पुराना हो जाने
पर रोगी में
खून की अत्यधिक
कमी हो सकती
हॆ !
परिकर्तिका
/ गुदचीर- सामान्य लक्षण-
१. शोच के
वक्त गुदा में
कॆंची से काटने
के समान पीडा
होती हॆ या
जलन होती हॆ,
जो कि शोच्
के बाद भी
लम्बे समय तक
बनी रहती हॆ
!
२. शोच् के
वक्त मल की
बाहरी सतह पर
लकीर के रूप
में खून लग
कर आता हॆ,
ऒर शोच् के
बाद कुछ बूदें
भी खून की
आ सकती हॆं
!
३. गुद द्वार
पर मस्सा अनुभव
होता हॆ जो
कि बाहर ही
रहता हॆ !
भगन्दर- सामान्य लक्षण-
१. इस रोग
का आरम्भ गुदविद्र्धि
से होता हॆ,
जिसमें गुदा के
आसपास के क्षेत्र
में एक उभारयुक्त
सूजन हो जाती
हॆ, जिसमें रोगी
को अत्यधिक पीडा
होती हॆ !
२. कुछ समय
बाद ये पीडिका
फ़ूट जाती हॆ,
तथा इसमें से
पीक/ मवाद बाहर
आ जाती हॆ,
जिससे रोगी को
आराम का अनुभव
होता हॆ !
३. कुछ वक्त
बाद जख्म भी
भर जाता हॆ,
ऒर रोगी को
लगता हॆ कि
वह स्वस्थ हो
गया हॆ !
४. पर उचित
इलाज न होने
की स्थिति में
यह रोग अन्दर
ही अन्दर बढता
रहता हॆ, तथा
रोगी को बार
बार यही तकलीफ
होती रहती हॆ,
तथा अन्ततः रोगी
का घाव नही
भरता, तथा उसमें
से लगातार मवाद
बहती रहती
हॆ !
इनमे से
कोई भी लक्षण
नजर आने पर
रोगी को सम्बन्धित
विशेषग्य से परामर्श
करना चाहिए तथा
अपनी सम्पूर्ण जाच
तथा ईलाज करवाना चाहिए !
क्षार सूत्र पद्धति द्वारा
ईलाज के फ़ायदे-
१. रोग के
दोबारा होने का
भय काफ़ी कम
हो जाता हॆ
!
२. रोगी को
बहुत कम समय
तक अस्पताल
मे दाखिल रहने
की आवश्यकता होती
हॆ !
३. बहुत बडा
जख्म नही बनता,
जिसके कारण इन्फ़ेक्शन
की सम्भावना भी
कम रहती हॆ!
४. रोगी अपनी
दिनचर्या के कार्य
बिना किसी परेशानी
के आसानी से
कर सकता हॆ!
५. आयुर्वेदिक पद्धति द्वारा
ईलाज में रोगी
का बहुत अधिक
खर्चा नही आता
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